खुसूर-फुसूर निरस्त के बाद उठे सवाल

खुसूर-फुसूर

निरस्त के बाद उठे सवाल

महा आयोजन के लिए तैयारी को लेकर योजना सामने लाई गई। भूमिपुत्रों के विरोध और उनके आंदोलन को दबाने का काम शुरू हुआ। लोकतंत्र के मंदिर में सत्ता पक्ष से ही सवाल उठ खडा हुआ । भूमि पुत्रों के आंदोलन तेज हुए। योजना पर सवाल खडे हुए। एक के बाद एक बिंदु पर भूमि पुत्रों ने योजना को हासिए पर खडा किया। जैसे-जैसे आंदोलन विस्तृत होता गया उस अनुसार ही योजना अमल के लिए हर तरह से दुष्चक्र भी चले। योजना के अमल के लिए जिस विकास को जिम्मेदारी दी गई उसने उसके दोष सामने नहीं आने दिए अपनी कमी को दबाए रखा और हर बार गुमराह करने की नीति को इस्तेमाल किया गया। अंतत: वहीं हुआ जो होना था। घोषणा के साथ योजना का निरस्त । इस निरस्त की घोषणा के साथ ही अब बडे सवाल भी उपजने लगे हैं। ये सवाल योजना बनाने वालों को लेकर उठ रहे हैं। खुसूर-फुसूर है कि पिछले डेढ वर्ष से योजना को लेकर करोडों रूपए के व्यय को व्यय की श्रेणी में रखा जाएगा या सिंहस्थ के अपव्यय की श्रेणी में। योजना के प्रारंभिक काल में ही भूमि पुत्रों ने एक सी बात कही तो फिर तमाम तरीके से उसे सही साबित करने के लिए जोर आखिर क्यों लगाया जाता रहा। इससे महा आयोजन के लिए धरातल पर काम करने वालों की काबिलियत पर ही सवाल खडा हो गया है। यही नहीं इस योजना को लेकर आंग्ल मानूष की कार्यशैली का उपयोग करते हुए स्थानीय सनातन सेवकों एवं भूमिपुत्रों के बीच खाई बनाई गई है उसका परिणाम महाआयोजन में सामने आएगा। भूमिपुत्रों जो उनका अब तक पुरी श्रद्धा के साथ स्वागत करते रहे हैं इस बार मात्र आंशिक रूप से ही इसमें हिस्सा रखें

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